मंत्रिपरिषद विस्तार के बेतुके मापदंड

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केबिनेट का एक बड़ा विस्तार और फेरबदल बहुत जल्दी होने जा रहा है, जो चुनावों और कसावट की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण होगा। सरकार के गठन के सवा तीन साल बाद होने जा रहे इस बहु-प्रतीक्षित विस्तार में कुछ बाहर हो जाएंगे, कुछ नए बनाए जाएंगे, कुछ के विभाग बदले जाएंगे और कुछ की पदोन्नति हो जाएगी। मंत्रिपरिषद में कुछ स्थान भी रिक्त हैं, जिन्हें भरा जाना है। कुछ मंत्रियों के पास विभागों का बोझ है, जिसे हल्का किया जाएगा।
भारत में आजादी के बाद से ही केंद्र और राज्यों में मंत्रिपरिषद के गठन की प्रक्रिया बड़ी विचित्र रही है। गठन के लिए कुछ बड़े बेतुके, अनावश्यक और राजनीति को दूषित करने वाले मापदंड बना दिए गए। इसमें सबसे बड़ा क्षेत्रीय संतुलन और जातीय संतुलन बनाने का मापदंड है। इसके अलावा भाषा, संस्कृति और क्षेत्र को लेकर भी मापदंड बना दिए गए। आजादी के बाद जब राज्यों का नए सिरे से गठन हुआ तो भाषा और संस्कृति को मूल आधार बनाया गया। इसके बाद चुनाव और फिर सरकारों के गठन में भी इस फार्मूले को लागू किया गया, जो रूढ़ि बन गई और एक कुपरंपरा के रूप में अभी तक कायम है।
किसी में इतना जिगर नहीं है कि राजनीति की इन बेमतलब की मान्यताओं को तोड़ दे और सिर्फ योग्यता और विशेषज्ञता के मापदंड को कानूनी जामा पहना कर लागू करे। भारत की बहु-भाषा, बहु-संस्कृति, बहु-धर्म और बहु-जातीय परिस्थिति के सामने सभी राजनीतिक दल नतमस्तक हैं। उन्हें डर है कि भारत की इस सांस्कृतिक विविधता को उन्होंने राजनीतिक व्यवस्था में स्वीकार नहीं किया, तो देश की जनता उन्हें अस्वीकार कर देगी। इसलिए राजनीति और सत्ता में बने रहने के लिए सभी भारत की इस अद्भुत सामाजिक बुराई के सामने साष्टांग दंडवत हो गए।
अतः आजकल सांसद, विधायक और मंत्रियों में क्षेत्र और जाति के कोटे तय कर दिए गए हैं। इतना ही नहीं, राजनीतिक दलों के संगठनों में भी यह भेड़ चाल जारी है। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि अयोग्य लोगों की संगठन से लेकर सरकार तक में भरमार हो गई। जिसका सीधा-सीधा असर विकास के गिरते ग्राफ के रूप में सामने आया। इन मापदंडों के कारण निकम्मे और अनुभवहीन लोग आगे आ गए, जिसकी क्षतिपूर्ति नहीं हो सकी। सभी जातियों में, सभी क्षेत्रों में और सभी वर्गों में अच्छे और योग्य लोगों की कमी नहीं है, लेकिन संतुलन बनाने के चक्कर में ऐसे लोगों की अनदेखी हो जाती है।
बहरहाल चुनाव की दृष्टि से प्रधानमंत्री को कुछ लोगों को वापस संगठन में भेजना है और इसी दृष्टि से कुछ को मंत्रिपरिषद में शामिल करना है। निर्मला सीतारमण संगठन से ही सरकार में आई थीं और लगता है कि उन्हें वापस संगठन में भेजा जा सकता है। उनका कार्य संतोषजनक नहीं है। यही कारण है कि उन्होंने इस्तीफा दिया है। कलराज मिश्र का इस्तीफा बुजुर्ग होने के कारण हुआ है और उमा भारती का स्वास्थ्य कारणों से। वैसे उमा भारती के विभागों का प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा है। मिश्र को राज्यपाल भी बनाया जा सकता है। राजीव प्रताप रूड़ी, डाॅ. संजीव कुमार बालियान और महेंद्रनाथ पांडे के इस्तीफे के पीछे भी अच्छा प्रदर्शन नहीं होने का कारण है। इसी क्रम में राधामोहन सिंह और मध्यप्रदेश के फग्गन सिंह कुलस्ते की भी विदाई की संभावना है। रेल मंत्री सुरेश प्रभु की स्थिति भी डांवाडोल है। चूंकि वे प्रधानमंत्री के निकट हैं और शिवसेना से आए हैं, इसलिए बच सकते हैं।
वैसे देखा जाए तो नागर विमानन मंत्री अशोक गजपति राजू पूसापति के विभाग का प्रदर्शन भी अच्छा नहीं है। इसी प्रकार से गिरिराज सिंह, बंडारू दत्तात्रेय और स्मृति ईरानी भी हैं, लेकिन राजनीतिक आवश्यकताओं के लिए उन्हें नहीं हटाया जाएगा। विवादास्पद और ढीले-ढाले मंत्री तो और भी हैं, लेकिन किसी न किसी मजबूरी और मापदंड के चलते वे बने रहेंगे। केबिनेट के दो स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्रियों--धर्मेंद्र प्रधान और पीयूष गोयल का प्रदर्शन और प्रभाव प्रारंभ से ही अच्छा रहा है। अतः इनकी पदोन्नति स्वाभाविक है, लेकिन मनोज सिन्हा और जयंत सिन्हा भी दावेदार हो सकते हैं। विधानसभा चुनाव को देखते हुए जेपी नड्डा को हिमाचल प्रदेश की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
जिनके मंत्रिपरिषद में शामिल होने की संभावना है, उनमें मध्यप्रदेश से प्रहलाद पटेल या राकेश सिंह, हिमाचल प्रदेश से प्रेमकुमार धूमल या अनुराग ठाकुर, गुजरात से भारती स्याल, कर्नाटक से शोभा करंदलाजे और उत्तरप्रदेश से सत्यपाल सिंह प्रमुख हैं। एनडीए के दौ नए सहयोगी एआईएडीएमके और जेडीयू से भी मंत्री बनाए जाएंगे। इसके अलावा शिवसेना से अनिल देसाई को स्थान मिल सकता है। एआईएडीएमके से थम्बीदुरई और मैत्रेयन तथा जदयू से आरपीएन सिंह, असम में सोनोवाल मंत्रिमंडल के सदस्य हेमंत बिस्व सरमा मंत्री बन सकते हैं। आंध्रप्रदेश से तेलुगुदेशम पार्टी का प्रतिनिधित्व भी बढ़ सकता है। देखना है कि इस कवायद का कितना असर होता है।