केबिनेट विस्तार: मोदी ने फिर किया धमाका

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रिपरिषद के बहु-प्रतीक्षित विस्तार और विभागों में फेरबदल करके कुछ नई स्थापनाएं की हैं, कुछ नए प्रश्न खड़े किए हैं, अपनी चिर-परिचित शैली के अनुसार चौंकाया है और रूढ़िगत परंपराओं को तोड़ा भी है। जो स्थापनाएं की हैं, वे अच्छी हैं, लेकिन जो प्रश्न खड़े किए हैं, वे अत्यंत गंभीर और विचारणीय हैं।
मोदी ने निर्मला सीतारमण की पदोन्नति करके और उन पर भरोसा करते हुए उन्हंे रक्षा मंत्रालय जैसा अत्यंत महत्वपूर्ण और भारी-भरकम विभाग देकर सबको चौंकाते हुए एक अच्छा फैसला किया है। रक्षा जैसा मंत्रालय हमेशा से वरिष्ठतम मंत्रियों को दिया जाता रहा है। इस दृष्टि से मोदी ने एक परंपरा और रूढ़ि को तोड़ा भी है। सीतारमण एक कुशल और सुलझी हुई राजनीतिज्ञ हैं और मंत्रिपरिषद में आने के पहले वे भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता थीं। संगठन में अच्छा कार्य करने के कारण ही उन्हें मंत्रिपरिषद में लिया गया था। लेकिन विस्तार और फेरबदल के पहले यह माना जा रहा था कि उनके विभाग का प्रदर्शन अच्छा नहीं है और उन्हें वापस संगठन में लिया जा सकता है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि उम्मीदों के विपरीत न-केवल मोदी ने उन्हें बनाए रखा, उन्हें पदोन्नत किया और महत्वपूर्ण मंत्रालय का दायित्व भी सौंपा गया।
सीतारमण के मामले में त्रि-स्तरीय फैसला करते हुए मोदी ने कई संकेत कर दिए हैं। केबिनेट की अन्य महिला मंत्रियों--सुषमा स्वराज, मेनका गांधी, साध्वी उमा भारती, साध्वी निरंजन ज्योति और स्मृति ईरानी के लिए यह बड़ा झटका है। मंत्रिपरिषद में स्वराज की स्थिति दूसरे नंबर पर है। मोदी की टीम में वरिष्ठता की दृष्टि से राजनाथ सिंह नंबर एक और स्वराज नंबर दो पर हैं। इसके बाद अरुण जेटली और नितिन गडकरी का नंबर आता है। और ये सभी एक समय प्रधानमं़त्री पद के दावेदार थे।
मोदी ने सीतारमण का कद बढ़ा कर उन्हें स्वराज की बराबरी पर लाकर खड़ा कर दिया है। वहीं दूसरी तरफ इससे मेनका, उमा और स्मृति की स्थिति कुछ कमजोर हुई है। उमा भारती तो वैसे भी वाणी-दोष और अच्छा परफार्मंेस नहीं करने के कारण संकट में थीं। हालांकि वे बच गई हैं, लेकिन सीतारमण-प्रसंग से वे और कमजोर हो गई हैं। उनके विभाग भी बदल दिए गए हैं।
मानव संसाधन मंत्रालय वापस लेने के पहले स्मृति ईरानी की स्थिति काफी मजबूत थी, लेकिन व्यर्थ की बयानबाजी के कारण उनसे विभाग वापस ले लिया था और उन्हें कपड़ा मंत्रालय जैसा सामान्य-सा मंत्रालय पकड़ा दिया था। अभी उन्हें सूचना और प्रसारण मं़त्रालय देकर वापस मजबूत स्थिति में लाया गया था, पर सीतारमण एपीसोड से वे फिर थोड़ी कमजोर हो गई हैं। मं़ित्रमंडल की दो अन्य महिला सदस्य कृष्णा राज और अनुप्रिया सिंह पटेल पर कोई असर नहीं हुआ है, दोनों वैसे भी लो-प्रोफाइल हैं।
एक नई परंपरा और एक नई स्थापना यह भी है कि पहली बार रक्षा मंत्रालय किसी महिला के हाथों में सौंपा गया है। इतना ही नहीं, विदेश और रक्षा जैसे अति-महत्वपूर्ण और अति-संवेदनशील मंत्रालय पहली बार एक साथ महिलाओं के हाथों में है। कहना होगा कि दोनों महिला नेत्रियां इन विभागों के लिए योग्य और सक्षम हैं। स्वराज ने विदेश मंत्रालय में रहकर बहुत अच्छा कार्य किया है। अपनी बार-बार की विदेश यात्राओं के कारण चर्चित मोदी को व्यंग्य में विदेश मंत्री तक कहा जाने लगा था और लगता था कि विदेश मंत्री स्वराज के पास जैसे कोई काम ही नहीं हो। लेकिन स्वराज ने अपनी कार्यशैली और प्रतिभा से इस मंत्रालय में श्रेष्ठ कार्य किया और बीमारी के बावजूद एक अच्छी छाप छोड़ी है।
सीतारमण पर मोदी ने जो भरोसा जताया है, उस पर उन्हें खरा उतरना है। रक्षा क्षेत्र में हमारे सामने अनेक बड़ी चुनौतियां हैं। चीन और पाकिस्तान के साथ भारत न-सिर्फ सीमाओं पर जूझ रहा है, बल्कि इस दौर में इस क्षे़़त्र में शीत-युद्ध भी काफी बढ़ गया है। नए रक्षामंत्री को हमारी सेनाओं को अत्याधुनिक बनाना होगा। आज ऐसे युद्ध उपकरणों की आवश्यकता है, जो हमारे पास नहीं हैं। हमें सीमाओं पर चीन से कई गुना बेहतर सामरिक ढांचागत विकास करना होगा। चीन और पाकिस्तान की दुरभिसंधि का मुकाबला एक अच्छी रक्षा नीति और बेहतर सामरिक साजो-सामान के साथ ही किया जा सकता है। उन्हें न-सिर्फ रक्षा मं़त्रालय में नौकरशाही की जड़ता को तोड़ना होगा, बल्कि सेना मुख्यालय और रक्षा मंत्रालय के बीच अहम की टकराहट को भी समाप्त करना होगा। जवानों को अच्छी सुविधाएं देने की आवश्यकता है और सैन्य अधिकारियों और जवानों के बीच बेहतर तालमेल की भी जरूरत है।
इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थीं, तब उन्होंने महिलाओं को आगे करने की दिशा में कोई खास पहल नहीं की थी। एक महिला के शीर्ष पर पहुंचने पर यह स्वाभाविक अपेक्षा होती है कि महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए काफी अच्छा काम होगा। पर जरूरी नहीं है कि यह मान्यता सही हो। मोदी के बारे में यह धारणा थी कि वे महिला विरोधी हंै, लेकिन उन्होंने इन आरोपों का अपनी कार्यशैली से स्वयं ही जवाब दे दिया है। भारत के लिए यह गर्व की बात होनी चाहिए कि मोदी ने विदेश और रक्षा जैसे अहम महकमों की बागडोर महिलाओं के हाथों में सौंपी है। यह भारत की महिलाओं के लिए भी गौरव का विषय है।
जहां तक मप्र का सवाल है मोदी ने टीकमगढ़ के दलित सांसद और वनमंत्री डाॅ. गौरीशंकर शेजवार के साले डाॅ. वीरेंद्र कुमार को केंद्रीय मंत्रिपरिषद में लिया है। प्रह्लाद पटेल और राकेश सिंह जैसे कई सांसद पिछड़ गए। यह भी एक अच्छा और चौंकाने वाला फैसला था। छठवीं बार लोकसभा में पहुंचे वीरेंद्र कुमार सहज, सरल और शांति से अपना काम करने वाले भाजपा के कार्यकर्ता रहे हैं। उनका चयन अच्छा फैसला है। इस प्रकार केंद्रीय मंत्रिपरिषद में अब मप्र से छह मंत्री हो गए हैं। आशाआंे के विपरीत हिमाचल प्रदेश से किसी को नहीं लिया गया और अनेक ऐेसे राज्यों की भी अनदेखी की गई, जहां 2017-18 में विधानसभा के चुनाव हैं। यही नहीं, उन्होंने जदयू को भी मंत्रिपरिषद में प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। इसका मतलब है कि मोदी के मन में अभी काफी कुछ चल रहा है अतः वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा के चुनाव के पहले मंत्रिपरिषद में फेरबदल की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
ताजा विस्तार और फेरबदल में अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों पर काफी भरोसा किया गया है। यह गलत परंपरा है। संसदीय व्यवस्था के लिए यह उचित भी नहीं है। यह योग्यता और विशेषज्ञता के महत्व को मान्यता देने के खिलाफ है। ऐसे फैसलों से सरकार पर नौकरशाही और हावी होगी। एक अरसे से राजनीति में नौकरशाहों को मंत्री बनाने की प्रथा चल पड़ी है। नौकरशाहों के रिटायर होने के बाद उन्हें सेवावृद्धि भी दी जाती रही है, उनके लिए कई स्थान सुरक्षित रखे जाते हैं, उनके लिए नए पद सृजित किए जाते हैं, उन्हें राज्यपाल बनाया जाता है और उन्हें राजनयिक बनाकर भी भेजा जाता रहा है। सेवानिवृत्त अधिकारियों के लिए मध्यप्रदेश तो स्वर्ग बन गया है।
इन नौकरशाहों को चाहिए कि वे सेवानिवृत्ति के बाद समाजसेवा करें या फिर शासन के कार्यों में निःशुल्क मदद करें। यह करना तो दूर, सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें और मोटी तनख्वाह के साथ भारी-भरकम सुविधाओं से नवाज दिया जाता है। इस प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए। यह नौकरशाही से आतंकित होने जैसा लगता है। भारत में यह मान लिया गया है कि प्रायः नौकरशाह ही सर्वगुणसंपन्न होते हैं। जैसे मंत्री गुणों की खान ( ? ) हैं, वैसे ही नौकरशाह भी मान लिए गए हैं। इन्हें कहीं भी बैठा दो, ये सब संभाल लेंगे--यह सोच कभी भी आधुनिक, प्रगतिशील और नवाचारी नहीं हो सकती। मोदी ने ताजा विस्तार में चार नौकरशाहों को मंत्री बनाया है। जिनमें दो आईएएस और एक-एक आईपीएस और आईएफएस हैं। यह मनोवृत्ति योग्यता और क्षमता के सिद्धांत की अनदेखी करती है। इसी तरह से फिल्म कलाकारों और खिलाड़ियों को भी मं़त्री बनाने की होड़ लग गई थी। पब्लिक फिगर की लोकप्रियता को राजनीति में भुनाने की इस प्रवृृत्ति पर रोक लगानी होगी। यह बात साबित करती है कि राजनीतिज्ञों में योग्यता नहीं है, इसलिए वे सेलीब्रिटीज की तरफ आकर्षित होते हैं। लेकिन वे कभी भी समाज के ऐसे लोगों को विकास और सेवा के कार्यों में सहभागी नहीं बनाते, जो योग्य हैं और परिणाम दे सकते हैं।