मुफ्त की योजनाओं और सब्सिडी की बाढ़ के दुष्परिणाम

देश में मुफ्त की योजनाओं को निरंतर आगे बढ़ाया जा रहा है, जो एक घातक प्रवृत्ति है। भारत को इस मामले में अपने पड़ोसी चीन से सीख लेनी चाहिए, जिसने क्रांति के बाद देश को दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनाया। इसके लिए उसने अपनी समूची जनशक्ति का श्रेष्ठ उपयोग किया। यही कारण है कि हर चीज के आयात के लिए दुनिया चीन पर निर्भर है। लेकिन इसके लिए चीन ने मुफ्त की योजना और सब्सिडी की राजनीति नहीं की है। ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग के सिद्धांत को मानने वाले यदि कर्म योग पर ही ध्यान दे दें, तो हम चीन से आगे निकल सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबों को निःशुल्क बिजली कनेक्शन देने की घोषणा करते हुए एक तरह से 2019 के लोकसभा चुनाव अभियान का आगाज कर दिया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह योजना पिछले वर्ष ही प्रारंभ कर दी थी। मोदी ने देश में वर्ष 2019 तक हर घर-गांव-शहर को रोशन करने के लिए कल 25 सितंबर 2017 को पं. दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के अवसर पर उपरोक्त सौभाग्य योजना की घोषणा की है। यह पं. उपाध्याय का जन्म शताब्दी वर्ष है। मोदी ने दिल्ली में तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम के नए परिसर--दीनदयाल ऊर्जा भवन का उद्घाटन करते हुए उपरोक्त सौभाग्य योजना प्रारंभ की।
इस समय सभी राज्यों में--माले मुफ्त दिले बेरहम--की तर्ज पर सरकारों की कार्यप्रणाली बनी हुई है। संभवतः इसकी शुरुआत आपातकाल के बाद मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने झुग्गीवासियों को मुफ्त पट्टा देने के साथ की। इसके बाद वे गरीबों के मसीहा बन गए थे। इस योजना का असर यह हुआ कि मप्र में अवैध झुग्गियों की बाढ़ आ गई और झुग्गियों का धंधा जोरशोर से चल निकला। इसमें कांग्रेस के तमाम नेता जुट गए--जहां उन्होंने इसे व्यापार बना दिया, वहीं दूसरी तरफ वोट बैंक भी तैयार कर लिया। भोपाल उस वक्त झुग्गियों का स्वर्ग बन गया था। अवैध कब्जे को ‘कानूनी दर्जा‘ मिलने के बाद रातोंरात झुग्गियां बनने लगीं। हालत यहां तक पहुंच गई कि कुछ झुग्गीवासियों ने तीन-तीन, चार-चार झुग्गियों के पट्टे ले लिए। झुग्गी नेताओं के नाम पर झुग्गी-काॅलोनियां तक बन गईं।
इसी प्रकार से आंध्रप्रदेश में एनटी रामाराव, तमिलनाडु में जे. जयललिता, छत्तीसगढ़ में डाॅ. रमन सिंह और मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चैहान ने चुनावी प्रलोभनों का इतिहास रच दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने गरीबों को खूब मुफ्त बिजली बांटी। इसका असर यह हुआ कि बिजली के खंभों से बिजली की चोरी की जाने लगी, जो अभी तक चल रही है। नीतीश कुमार ने गरीबी रेखा से ऊपर जीवनयापन करने वाले 50 लाख परिवारों को मुफ्त बिजली कनेक्शन देने की योजना पिछले साल 15 नवंबर से शुरू कर दी थी। दरअसल मुफ्त की योजनाओं के दो पहलू हैं--पहली, चुनाव पूर्व की घोषणा और चुनावी घोषणा पत्र में वादे और दूसरी, सरकार में आने के बाद मुफ्त की अन्य योजनाओं का क्रियान्वयन। इस वक्त मध्यप्रदेश को निःशुल्क योजनाओं का स्वर्ग कहा जा सकता है। यहां पर जन्म से लेकर अंतिम संस्कार तक और शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक तथा रोजगार से लेकर तीर्थयात्रा कराने तक की मुफ्त योजनाएं हैं।
देश की इन तमाम मुफ्तिया योजनाओं का असर यह हुआ कि समाज का एक वर्ग काम-धंधे से बेफिक्र हो गया। रही-सही कसर मनरेगा ने पूरी कर दी। इसके अलावा गरीबों के लिए सब्सिडी का भंडारा भी खोलकर रखा गया है। इतना कुछ होने के बाद भी हमारे यहां अमीरी का ग्राफ बढ़ रहा है और साथ में गरीबी का ग्राफ भी बराबरी से बढ़ रहा है। यह अत्यंत विचारणीय है। बैंकों के लाखों करोड़ रुपए की ऋण वसूली हो नहीं पा रही है और उधर दो दर्जन से भी अधिक उद्योगपतियों के कर्जों पर सरकार मेहरबान है।
हमारे देश में जिस तरह से गरीबों के कल्याण के लिए मुफ्त या सब्सिडी के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और मध्यम वर्ग तथा निम्न मध्यम वर्ग को दबोचा जा रहा है, उससे वर्ग विभाजन की स्थिति पैदा हो गई है। सरकार ने तो यहां तक कह दिया है कि मध्यम वर्ग अपनी चिंता खुद कर ले। हमारे यहां गरीबी की क्या स्थिति है, इस सिलसिले में यदि विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट देखी जाए, तो पता चलता है कि दुनिया में गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या सबसे ज्यादा संख्या भारत में है। जबकि नाइजीरिया दूसरे नंबर पर है। रिपोर्ट के मुताबिक 2013 में भारत की 30 प्रतिशत आबादी की औसत दैनिक आय 1.90 डालर से कम थी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि दुनिया के एक-तिहाई गरीब भारत में रहते हैं।
हालांकि एक आंकड़ा हमारे देश का भी है, जिसमें प्रति व्यक्ति खपत के आधार पर देश की आबादी में गरीबों का अनुपात वर्ष 2011-12 में घटकर 21.9 प्रतिशत पर आ गया है, जबकि यह 2004-05 में 37.2 प्रतिशत पर था। कहा गया था कि योजना आयोग ने गरीबी की गणना के अपने पूर्व के विवादास्पद तथ्य के बाद यह नया आंकड़ा जारी किया। इसी प्रकार से योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने गरीबों की दैनिक आय और उनकी जरूरत पर जो आंकड़े जारी किए थे उस पर भारी बवाल मचा था। यूपीए सरकार के समय तत्कालीन विपक्ष ने कहा था कि क्या 30-32 रुपए प्रतिदिन पर कोई गरीब अपनी जीविका चला सकता है ?
कुल मिलाकर सरकारों को राजनीति और वोटबैंक से हटकर सही अर्थों में विकास को मुद्दा बनाना चाहिए। चुनाव के पहले खैरात बांटना और चुनाव के बाद कमर तोड़ देना--सभी राजनीतिक दलों का शगल बन गया है। सरकार को मुफ्त की सभी योजनाएं बंद कर देनी चाहिए। सब्सिडी भी जहां आवश्यक है, वहीं देना बेहतर होगा। समाज के सभी आय वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए समान दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।