भोपाल ।   नगर निगमों में महापौर व पालिका और परिषदों में अध्यक्षों के प्रत्यक्ष चुनाव कराने पर भाजपा संगठन का झुकाव है। बड़ी संख्या में पदाधिकारी सहित रणनीतिकार एकमत हो गए हैं। इसलिए एकबार फिर संभावना बन गई है कि शासन के स्तर पर इस संबंध में अध्यादेश जारी किया जा सकता है। पहले भी अध्यादेश राजभवन तक मंजूरी के लिए पहुंचा दिया गया था। इधर, बड़ी संख्या में विधायक चाहते हैं कि स्थानीय निकायों के चुनाव में महापौर के साथ ही पालिका परिषदों के अध्यक्ष के चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से हों। जबकि पार्टी ने विधायकों के विरोध को दरकिनार कर दिया है। संगठन में बड़ी संख्या में पदाधिकारियों का तर्क है कि प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराए जाएं, यानी जनता ही महापौर और अध्यक्षों का चुनाव करे। तर्क है कि इससे स्थानीय सरकार के समीकरणों के लिहाज से महापौर और अध्यक्षों पर दबाव कम रहेगा। भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगाने में आसानी होगी। पार्षदों के खरीद-फरोख्त जैसी गतिविधियों पर अंकुश रहेगा। संगठन का सरकार पर दबाव है कि प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव के लिए अध्यादेश की प्रक्रिया पूरी करते हुए इसी आधार पर चुनाव कराया जाए। शासन स्तर पर अध्यादेश तैयार कर राजभवन तक पहुंचा दिया गया है। यानी स्थानीय निकाय के चुनाव में महापौर और परिषद अध्यक्षों के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होंगे या अप्रत्यक्ष तरीके से, इसकी गेंद अभी भी सरकार के पाले में है। यदि संगठन के पदाधिकारियों की चली तो प्रत्यक्ष प्रणाली के लिए अध्यादेश जारी हो जाएंगे। इसके बाद चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। गौरतलब है कि वर्ष 2019 में तत्कालीन कमल नाथ सरकार ने मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम में संशोधन कर महापौर, नगर पालिका एवं नगर परिषद के अध्यक्षों के सीधे निर्वाचन को खत्म कर दिया था। यानी इन पदों पर निर्वाचन पार्षदों द्वारा होने का नियम लागू हो गया था, जो आज भी प्रभावशील है।