झाबुआ मेडिकल कॉलेज पर उप-मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल के बयान से फैला भ्रम •पंकज पाठक•
ज्यों-की-त्यों धर दीन्हि चदरिया
यदि अख़बार में मुख्यमंत्री की घोषणा छपे, फिर चार दिन बाद इस घोषणा का उप-मुख्यमंत्री द्वारा किया गया खंडन छप जाए, तो इसे क्या कहा जाएगा ? क्या यह सुशासन अथवा सुराज है ? या फिर यह अ-राज है ? जो भी हो, यह सम्यक समन्वय तो नहीं है । मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निकटतम सहयोगी—उप-मुख्यमंत्री-द्वय राजेन्द्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रबल समर्थक हैं । लेकिन मोहन मंत्रिपरिषद एक टीम के रूप में कार्य कर रही है। क्योंकि सभी जानते हैं कि इसके सूत्र कहाँ से संचालित होते हैं और संघ के किस दिग्गज अधिकारी की समूचे परिदृश्य पर नज़र बनी रहती है । बावजूद इसके, उपरोक्त घटना घट जाती है ।
शासन और प्रशासन में इस स्थिति को क्या कहा जाए ? लापरवाही ? अनदेखी ? या ग़ैर-इरादतन चूक ? मुख्यमंत्री की घोषणा और उप मुख्यमंत्री द्वारा खंडन— इसमें क्या सही है ? यह जानने के लिए पहले तो यह समझ लिया जाए कि उप-मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने मुख्यमंत्री डॉ. यादव की घोषणा का खंडन नहीं किया है । उन्होंने तो मुख्यमंत्री का नाम भी नहीं लिया । उन्होंने इतना भर कहा कि इस वित्त वर्ष में झाबुआ में मेडिकल कॉलेज खोलने की कोई योजना प्रस्तावित नहीं है । जबकि मुख्यमंत्री चार दिन पहले झाबुआ में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की घोषणा कर चुके थे ।
अब किसे सही माना जाए ? सही उसे माना गया, जब सीएम ने खंडन का मंडन करते हुए झाबुआ में मेडिकल कॉलेज की स्थापना के लिए कार्रवाई ही प्रारंभ करा दी । मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने खंडन का कोई ज़िक्र नहीं किया, बल्कि सौजन्यता-पूर्वक अपनी पूर्व-घोषणा पर अमल आरंभ कर दिया ।
बड़ा विचित्र और अटपटा-सा यह घटनाक्रम कुछ इस प्रकार से है—
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने चार दिन पहले क्या घोषणा की है, इसकी जानकारी प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री शुक्ल को नहीं थी। झाबुआ में मुख्यमंत्री यादव ने मशहूर आदिवासी मेला भगोरिया में भील एवं भिलाला जनजातियों के बीच यह घोषणा की थी कि झाबुआ में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की जाएगी । मुख्यमंत्री ने यह घोषणा मेला प्रारम्भ होने के दूसरे दिन नौ मार्च को की, जबकि मेला सात मार्च को प्रारम्भ हो गया था । यह प्रति वर्ष एक सप्ताह के लिए आयोजित किया जाता है । मुख्यमंत्री की इस घोषणा के चार दिन बाद गत 13 मार्च 2025, गुरुवार को उप-मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने विधानसभा के बजट सत्र के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के पुत्र कांग्रेस के विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया के एक सवाल के जवाब में सदन को बताया कि झाबुआ में मेडिकल कॉलेज खोलने की योजना प्रस्तावित नहीं है । उन्होंने यह भी कहा कि इस संबंध में कोई सर्वेक्षण भी नहीं कराया जा रहा है ।
मुख्यमंत्री की घोषणा और उप-मुख्यमंत्री के स्पष्टीकरण के समाचार जब अख़बारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुए, तब प्रशासन जागा अवश्य, लेकिन मुख्यमंत्री ने इसका तत्काल संज्ञान लिया । मुख्यमंत्री ने गत 15 मार्च 2025, शनिवार को कहा है कि शीघ्र ही झाबुआ में मेडिकल कॉलेज आरंभ किया जाएगा । इस प्रकार उन्होंने उप-मुख्यमंत्री की जानकारी को दुरुस्त कर दिया । उन्होंने कहा कि इस नए मेडिकल कॉलेज का संचालन देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर द्वारा यूनिवर्सिटी टीचिंग डिपार्टमेंट के रूप में किया होगा । देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर के कुलगुरु (कुलपति) प्रो. डॉ. राकेश सिंघई ने इस संबंध में मुख्यमंत्री निवास में डॉ. यादव से भेंट कर विस्तार से चर्चा की।
कुलपति डॉ. सिंघई ने बताया कि झाबुआ में आरंभ होने वाले मेडिकल कॉलेज का संचालन इंजीनियरिंग कॉलेज के भवन में होगा और जिला चिकित्सालय झाबुआ को इससे संबद्ध किया जाएगा । मुख्यमंत्री द्वारा लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग को इस संबंध में सीधे ही आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गए हैं । स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग के मंत्री स्वयं उप-मुख्यमंत्री शुक्ल हैं । यह घटना टल सकती थी, यदि प्रशासन सतर्क रहता । जब यह जानकारी विधानसभा में प्रश्नोत्तर काल में एक प्रश्न के उत्तर के माध्यम से सामने आयी, तो उप-मुख्यमंत्री सदन में अनुमति लेकर इस बारे में स्थिति स्पष्ट कर सकते थे, तो भ्रम का वातावरण निर्मित नहीं होता ।