ज्यों-की-त्यों धर दीन्हि चदरिया

भोपाल।सुभद्रा कुमारी चौहान की आज 74 वीं पुण्यतिथि है।वे थीं तो ज़मींदार परिवार से, लेकिन बेहद सादगी से रहती थीं।प्रयागराज में जन्मीं थीं।स्कूल में महादेवी वर्मा, जो आयु में उनसे छोटी थीं, उनकी प्रिय सहेली थीं।शादी खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह से हुई।बाद में दोनों जबलपुर आ गए।1920 में दोनों अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे।सुभद्रा जी, याने साहित्य भी और संग्राम भी—दोनों साथ-साथ चला।उनके जीवन की एक विलक्षण बात थी कि विवाहोपरांत भी सुभद्रा कुमारी की सादगी में कमी नहीं आई।इस पर गाँधी जी ने टोंक दिया और कहा कि तुम्हारी शादी हो गई है, इसलिए किनार वाली साड़ी और चूड़ी पहनो एवं बिंदिया लगाओ। असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वे पहली भारतीय महिला थीं।
जब ग्वालियर रियासत थी और यहाँ सिंधिया का राजघराना था, तब अँगरेजों की उनसे बड़ी मित्रता थी। उन्होंने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का कभी साथ नहीं दिया।1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ नहीं दिया, उल्टे अंग्रेजों की मदद की।सुभद्रा कुमारी चौहान की एक प्रसिद्ध कविता में तो इसका स्पष्ट उल्लेख किया गया है।यह कविता हम सभी ने बचपन में पढ़ी है, क्योंकि यह हमारे पाठ्यक्रम में भी थी।कंगना रनाउत की फ़िल्म मणिकर्णिका में भी इस घटना का ज़िक्र है।

कविता की ये लाइनें हैं—

“रानी बढ़ी कालपी आई,
कर सौ मील निरंतर पार।
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर,
गया स्वर्ग तत्काल सिधार।
यमुना तट पर अंग्रेजों ने,
फिर खाई रानी से हार।
विजयी रानी आगे चल दी,
किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेजों के मित्र सिंधिया,
ने छोड़ी रजधानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुंह,
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो,
झांसी वाली रानी थी।”

हमारे ये महापुरुष, स्वतंत्रता सेनानी और विद्वान आज भी हमारे जीवन, समाज और हमारी संपूर्ण व्यवस्था के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं, आवश्यक हैं और अनिवार्य हैं।इन महापुरुषों के जीवन और इनके कार्यों से नई पीढ़ी को अवगत कराने के लिए शैक्षणिक संस्थाओं में प्रतिदिन नवाचारी आयोजन होने चाहिए। इन शैक्षणिक संस्थाओं में प्रतिदिन तो बड़े आयोजन नहीं हो सकते, लेकिन इन संस्थाओं के दैनंदिन के कार्यक्रम में इस तरह के आयोजन को संक्षिप्त रूप में जोड़े जाने की आवश्यकता है।क्योंकि नई पीढ़ी हमारे अतीत से अनभिज्ञ है।अब वह समय आ गया है, जब हमारी नई पीढ़ी को हमारे अतीत और हमारी विरासत के अनेक अनछुए पहलुओं से रू-ब-रू कराया जाए।