आरबीआई : मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक बुधवार को मुंबई में शुरू हुई। इसमें लिए गए फैसलों की जानकारी शुक्रवार को मिलेगी। माना जा रहा है कि ब्याज दरों में पांच साल में पहली बार कटौती हो सकती है। आखिरी बार मई 2020 में ब्याज दरों में कमी की गई थी। तब RBI ने रेपो रेट को 4% कर दिया था। कोविड लॉकडाउन के दौरान इकॉनमी को सहारा देने के लिए यह कदम उठाया गया था। यूक्रेन युद्ध, सप्लाई चेन में रुकावट और वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी के कारण महंगाई बढ़ी। इसके बाद RBI ने ब्याज दरों में सात बार बढ़ोतरी की और इसे 6.5% तक पहुंचा दिया। फरवरी 2023 से ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि 25 बेसिस पॉइंट (bps) की कटौती हो सकती है। लेकिन कुछ इकनॉमिस्ट्स का कहना है कि अगर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप टैरिफ को लेकर ऐसे ही धमकियां देते रहे तो रेपो रेट में कटौती जल्दबाजी होगी। इससे वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ सकता है। कम ब्याज दरों से रुपये पर भी दबाव पड़ सकता है। विदेशी निवेशकों के लिए अमेरिकी डेट ज्यादा आकर्षक हो सकता है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
बैंक ऑफ बड़ौदा  कहा कि अनिश्चितता  ग्रोथ में जोखिम है। यह RBI को दरों में कटौती शुरू करने के लिए प्रेरित कर सकता है। दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के लिए, दरों में कटौती पहले शुरू हो गई थी, जिससे उन्हें 'वेट एंड वॉच' अप्रोच के लिए समय मिल गया। उन्होंने कहा कि मैक्रो और जियो-पॉलिटिकल कारकों को संतुलित करते रेपो रेट में 25 बीपीएस की कटौती की गुंजाइश है।

इस नीतिगत बैठक में RBI के दो नए सदस्य गवर्नर संजय मल्होत्रा और डिप्टी गवर्नर एम. राजेश्वर राव शामिल हैं। मल्होत्रा ने हाल ही में 1.5 लाख करोड़ रुपये की नकदी डालने के उपायों की घोषणा की। इसे दरों में बदलाव का रास्ता साफ करने वाला कदम माना जा रहा है। दरों में कटौती के बावजूद नकदी की कमी से उधार लेने की लागत अधिक रह सकती है। सरकार ने ब्याज दरों में कटौती का समर्थन किया है। रेपो रेट वह दर होती है जिस पर RBI बैंकों को कर्ज देता है। इसमें कमी होने से बैंकों को सस्ता कर्ज मिलता है। इसका असर आम लोगों के लोन पर भी पड़ता है। लोन की EMI कम हो सकती है।