ज्यों-की-त्यों धर दीन्हि चदरिया

धर्म-संस्कृति-प्रिय मुख्यमंत्री
प्रस्तुत करते रहेंगे 
वीरता-विद्वता के आख्यान

भोपाल । मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग से संबद्ध महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ द्वारा दिल्ली में तीन दिनों के लिए 12-13-14 अप्रैल को आयोजित सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य के महाप्रदर्शन ने मध्य प्रदेश की राजनीति और संस्कृति ने एक नया इतिहास रच दिया है । मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने पदभार संभालने के सवा साल के भीतर ही यह संदेश दे दिया कि न-केवल वे सिंहस्थ तक, बल्कि लंबे समय तक मध्य प्रदेश की कमान अपने हाथों में रखेंगे ।वे देश के पहले नेता हैं, जिन्होंने लाल क़िले पर भगवा ध्वज लहरा दिया ।

उन्होंने कतिपय इतिहासकारों के षड्यंत्रों को नाकाम करते हुए विक्रम संवत् के संस्थापक सम्राट विक्रमादित्य की ख्याति को पूरे देश में फैला दिया है।वीर विक्रमादित्य के न्यायप्रिय शासन और उनकी विद्वता की कहानियों को उज्जैन के महान लेखक पद्मश्री अलंकृत डॉ भगवतीलाल राजपुरोहित की कलम एवं संजय मालवीय के निर्देशन में 250 उत्कृष्ट कलाकारों ने भारत के जनमानस पर उकेर दिया। वीरता और विद्वता का यह संगम स्वयं मप्र है, जहाँ महारानी अहिल्याबाई, कमलापति, लक्ष्मीबाई, अवंतीबाई और दुर्गावती की आत्मा है, तो सम्राट विक्रमादित्य, राजा भोज, रघुनाथ शाह, शंकर शाह और टंट्या भील जैसे महानायकों की अमर गाथाएँ हैं । वहीं दूसरी तरफ
गुरु सांदीपनि, राजा भर्तृहरि, वराहमिहिर, वररुचि, गालव जैसे ऋषियों की भारतीय ज्ञान परंपरा है ।डॉ यादव स्वयं रंगमंच के कलाकार और कवि हैं, योगी हैं और पहलवान भी । विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता और संघ के स्वयं सेवक भी हैं । वे राजनीति विज्ञान के अध्येता और भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति और दर्शन के उत्कृष्ट व्याख्याकार हैं । पहली बार भारत ने एक ऐसा मुख्यमंत्री चुना गया है, जो भारत की ज्ञान की सांस्कृतिक परंपरा से आता है । नाटक के एक प्रदर्शन में उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य के पिता महाराजा महेंद्रादित्य की भूमिका का सफल निर्वहन किया था ।


दिल्ली में इन तीन दिनों में उप राष्ट्रपति जगदीश धनखड़, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, भाजपाध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के बाद प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई पटेल, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और मध्य प्रदेश के समूचे मंत्रिमंडल की उपस्थिति रही । उपराष्ट्रपति ने तो कहा कि आज भारत में सम्राट विक्रमादित्य की शासन प्रणाली के आधार पर ही कार्य हो रहा है । मुख्यमंत्री यादव ने अपना लक्ष्य-संधान करते हुए कहा कि लाल किले का यह प्रांगण आज भारत के गौरवशाली अतीत का जीता-जागता प्रमाण बन गया है । इकबाल ने कहा है—कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहाँ से। यहां के वीर महापुरुषों ने हमेशा भारत की आन-बान-शान के लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया । विक्रमादित्य ने न-केवल पूरे देश को सुशासन में बदला, बल्कि देश से आगे जाकर शासन की व्यवस्थाओं के बलबूते समूची मानवता को धन्य करते हुए सुशासन के सारे तंत्र को पुनर्स्थापित किया । विक्रमादित्य का शासन राजा राम के शासन की याद दिलाता है। उन्होंने धर्म, संस्कृति और अध्यात्म के माध्यम से भारतीय संसदीय प्रजातंत्र की शासन व्यवस्था को एक नई दृष्टि दी है । वे शासन के परंपरागत और रूढ़िग्रस्त ढर्रे को बदल रहे हैं ।
यह महानाट्य उसी का एक प्रबल संकेत है ।

मुख्यमंत्री यादव ने भी परम्परागत व्यवसाय और खेती को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया  है । इससे ग्रामोद्योग की वापसी के संकेत भी मिलते हैं । उन्होंने जैविक खेती की दिशा में भी बड़ा क़दम रखा है । उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक कार्यक्रम में मंच से ही बताया था कि आप आश्चर्य करेंगे कि मध्यप्रदेश में देश कि 40 प्रतिशत जैविक खेती होती है ! यह सुनते ही  मध्य प्रदेश सरकार के कान खड़े हो गए और इस पर ध्यान दिया जाने लगा, पर थोड़े दिन बाद फिर वही, ढाक के तीन पात ! हम वापस उसी ढर्रे पर लौट आए !

परंतु मोहन यादव इस ढर्रे पर लौटने वाले नहीं । वे मत्स्य पालन, डेयरी उद्योग और गौपालन को बढ़वा दे रहे हैं । उन्होंने 17 शहरों को धार्मिक घोषित कर वहाँ शराबबंदी लागू कर दी है ।

(जनसंदेश टाइम्स. लखनऊ से साभार)