ज्यों-की-त्यों धर दीन्हि चदरिया

बिहार में भाजपा को सत्ता से हटाने का घटनाक्रम पार्टी के लिए एक बड़ा झटका तो अवश्य है, इसमें दो-मत नहीं हो सकते।यह घटना ऐसे समय में हुई है, जब पार्टी ने महाराष्ट्र में आखिरकार अपना झंडा गाड़ ही दिया था।किन्तु यह भी उतना ही सच है कि देश में इस बखत और कोई ऐसा नेता नहीं है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुक़ाबला कर सके।
नरेंद्र मोदी को छोड़ एक भी प्रतिभाशाली, प्रभावशाली और करिश्माई राष्ट्रीय नेता नहीं है।जो भी हैं, सभी क्षेत्रीय नेता हैं। वक़्त आने पर नमो इन इलाकाई सरदारों को भी दहला देते हैं।अब देखिएगा, बिहार में भी प्रवर्तन निदेशालय जल्दी ही सक्रिय हो जाएगा।उसके बाद महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश वाला खेल स्टार्ट ! हालाँकि इस खेल की आहट नीतीश कुमार को पहले ही लग चुकी थी, इसलिए उन्होंने विलंब नहीं किया।पर बिहार में महागठबंधन सरकार चैन से नहीं बैठ पाएगी, यह तय है।हाँ, इतना अवश्य है कि राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव अब उनके सामने दब कर काम करेंगे, क्योंकि वे और उनकी पार्टी अपने जीवन के सबसे कठिन दौर में हैं।इस नए समीकरण से उन्हें और उनकी पार्टी को थोड़ी राहत अवश्य मिलेगी, इसमें संदेह नहीं है।
नीतीश कुमार खिलाड़ी तो हैं, लेकिन सिर्फ़ एक ही राज्य के, जहाँ पर भारतीय जनता पार्टी का भी प्रभाव है।मतलब यहाँ पर भी वे एकछत्र नेता नहीं हैं।इसके अलावा यहाँ कांग्रेस सहित और भी छोटे-छोटे राजनीतिक द्वीप हैं।राष्ट्रीय जनता दल यहाँ सबसे बड़ा जातीय फैक्टर है। नीतीश कुमार से तगड़े नेता तो ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक हैं, जो सबसे लंबे मुख्यमंत्रित्वकाल का कीर्तिमान रचने जा रहे हैं।जिन्होंने कभी भी गठबंधन की सरकार नहीं बनायी।हालाँकि ओड़िशा में भाजपा डटी हुई है।लेकिन लगता है कि जब तक पटनायक हैँ, तब तक उन्हें हराया नहीं जा सकता।अब देखना होगा कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने के बाद क्या आदिवासी राज्यों में राजनीतिक समीकरण बदलेंगे ?क्योंकि झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य-प्रदेश जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में भाजपा को मुँह की खानी पड़ी थी।बाद में मध्य प्रदेश में जोड़तोड़ कर सरकार बना ली।ऐसा ही खेला भाजपा ने महाराष्ट्र में भी किया, लेकिन राजस्थान में मोदी-शाह ऐसा नहीं कर पाए हैं अभी तक।
भारतीय जनता पार्टी के लिए इस वक़्त दो प्रमुख चुनौतियां हैं। एक तो आम आदमी पार्टी देश में धीरे-धीरे अपना विस्तार करती जा रही है।उसने अनेक राज्यों में अपना संगठनात्मक ढांचा तैयार कर लिया है।यही नहीं, इस पार्टी ने कार्यकर्ताओं के भी फौज बना ली है।दो राज्यों में उसकी सरकारें हैं।गोवा में उसके दो विधायक चुनकर आ गए हैं। मध्य प्रदेश में उनका एक महापौर चुना गया है। मध्य प्रदेश सहित कुछ राज्यों में उनके पार्षद भी चुन कर आए हैं।बहुत जल्दी आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाएगा। इसके लिए उन्हें एक और राज्य में अपनी सरकार क़ायम करनी होगी।तीन प्रदेशों में इस पार्टी को राज्य पार्टी का दर्जा हासिल हो चुका है।देखना है हिमाचल प्रदेश में वे क्या गुल खिलाते हैं !
भारतीय जनता पार्टी के सामने दूसरी चुनौती यह है कि वह देश के कुछ राज्यों में अभी तक अपना प्रभुत्व स्थापित नहीं कर सकी है। इन राज्यों में दक्षिण के चार राज्य हैं— तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरल।ओड़िशा में वह न तो सरकार में है और न ही गठबंधन में। बाक़ी राज्यों में वह या तो सरकार में है या गठबंधन में है।कम ही राज्य ऐसे हैं, जहाँ पर उसने अपनी सरकार खो दी है।फिर भी कहना होगा कि पश्चिम बंगाल उसके लिए अभी भी एक बड़ी चुनौती है।बिहार में वह सभी पार्टियों के आगे अकेली पड़ गई है।भविष्य में हिमाचल प्रदेश और हरियाणा उसके हाथों से फिसल सकते हैं।हिंदी राज्यों में उसका घटता प्रभुत्व ख़तरे की घंटी बजा रहा है। अगले वर्ष के विधानसभा चुनावों में उसे अपनी खोई हुई ताक़त वापस प्राप्त करनी होगी।मध्य प्रदेश में भाजपाइयों की दबंगई बढ़ती जा रही है।इसे रोकना होगा।उज्जैन में भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं द्वारा महाकालेश्वर मंदिर में नंदीगृह के बैरिकेड तोड़ना अराजकता की पराकाष्ठा है।उस पर कड़ी कार्रवाई नहीं करना यह दर्शाता है कि सरकार अपने ही कार्यकर्ताओं को वातावरण बिगाड़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी में—राजीव गांधी के नेतृत्व में 1984 में लोकसभा चुनाव में मिली महाविजय का किर्तिमान भंग करने की कुव्वत है।लेकिन उसे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों और उसके बाद वाले साल में होने वाले लोकसभा के चुनाव के पहले कुछ बड़े नीतिगत परिवर्तन करने होंगे।मतलब सबसे पहले तो मुफ़्तख़ोरी बंद करना होगी और इसकी शुरुआत जन-प्रतिनिधियों और उच्च स्तरीय लोक-सेवकों से करनी चाहिए। इनकी पेंशन सहित समस्त सुविधाओं को बंद करने की आवश्यकता है। लोगों में इस वक़्त इसे लेकर अत्यंत आक्रोश है।दूसरे, युवाओं को हुनरमंद बनाने के लिए एक बड़े राष्ट्रीय अभियान के रूप में कार्य करने की आवश्यकता है।तीसरे, महँगाई को पूरी तरह से समाप्त किया जाए।चौथे, बड़े पूंजीपतियों को गले लगाने के बजाए उनके साथ सख़्ती की जाए।पाँचवें, मध्यम वर्ग को भी लगे कि यह सरकार उनकी भी है, इसलिए करों का बोझ कम किया जाए।छठे, भाजपा के सत्ता में आने के बाद प्रशासन के काम करने के तरीक़ों में कोई बदलाव नहीं आया है।इस कारण जनता त्रस्त है। इस मामले में भाजपा कांग्रेस के ही पदचिह्नों पर चल रही है। यह बेहद ख़तरनाक है।देश में “गडकरी शैली” की तरह बड़े पैमाने पर सुधार की आवश्यकता है, सिर्फ़ वह हिंदुत्व से काम नहीं चलेगा। हिंदुत्व अपनी जगह ठीक है, लेकिन वही सब कुछ नहीं है।सातवें, महँगी शिक्षा और महँगे इलाज से जनता टूट चुकी है। लेकिन मुफ़्तख़ोर नेता एवं नौकरशाही इस दर्द को नहीं समझ पाएंगे। यदि भ्रष्टाचार को समाप्त कर शिक्षा और स्वास्थ्य को नि:शुल्क कर दिया जाए, तो यह बहुत बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन होगा।आठवें, विलंब से महँगा  न्याय देने वाली न्यायिक व्यवस्था को भी बदलने की ज़रूरत है। यह भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा अड्डा है, पुलिस की तरह। अतः न्यायधीशों की सुविधाएँ काम कर, उनके अवकाश को घटाने और काम की अवधि को बढ़ाने की भी आवश्यकता है।