मगध की धरती प्रारंभ काल से ही ऋषि-मुनि, साधक-संत, दरवेश, सूफी-संत और फकीरों की साधना स्थली रही है. आज भी क्षेत्र में एक से बढ़कर एक स्थान हैं, जहां दवा से ज्यादा दुआ का असर है. दुआ भी ऐसा कि जहां रहमत का करम सदैव बरकरार है. गया जिले की बीथोशरीफ दरगाह हिंदू-मुस्लिम आस्था का केंद्र है. गया-पटना मुख्य मार्ग पर स्थित गांव बीथो शरीफ में हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह अलेह की दरगाह है. इस दरगाह पर हिन्दू-मुस्लिम सभी हाजरी लगाने आते हैं.
यहां अक्सर जिन्न, भूत-प्रेत, जादू-टोना और लाइलाज बीमारी से पीड़ित लोग आते हैं. इस दरबार में फरियाद लगाने से उनकी मन्नतें पूरी होती हैं. यह भी कहा जाता है कि सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हर विधानसभा चुनाव से पहले यहां चादरपोशी करते हैं. अगर वो नहीं आ पाते, तो उनके नाम से उनके समर्थक यहां चादर चढ़ाते हैं.
हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश अशरफ रहमतुल्लाह अलेह का मजार 600 साल पुराना है. इस दरगाह की ख्याति दूर-दूर तक है. लोगों की आस्था है कि लाइलाज बीमारी के मरीज बाबा के दरगाह पर हाजिरी देते हैं और कुछ दिनों में वो स्वस्थ हो जाते हैं. इस दरगाह पर हिन्दू-मुस्लिम एक समान इबादत करते दिखते हैं. 
हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्वेश रहमतुल्लाह साहेब ईरान मुल्क से आए थे. उन्होंने तीन बार पैदल हज किया था. उनकी दुआओं से यहां के राजा की इकलौती पागल बेटी ठीक हो गयी थी. राजा ने खुश होकर उन्हें तोहफे में जायदाद देना चाहा, लेकिन हजरत साहब ने राजा का तोहफा स्वीकार नहीं किया. बाद में राजा की छठी पीढ़ी ने 1100 बीघा जमीन दान में दिया था.
बिथो शरीफ दरगाह में हजरत मखदूम सैयद शाह दुर्गेश अशरफ रहमतुल्ला अलेह का 543वां उर्स 19 फरवरी से शुरू होगा, जो 23 फरवरी तक चलेगा. इस दौरान मखदूम बाबा के खिरका, पगड़ी व बधी का अकीकतमंद दर्शन करेंगे. दरगाह आने वाले अकीकतमंद इस जगह पर सूफियाना कव्वाली का आनंद उठा सकेंगे. दरगाह के सज्जादा नशीम शैयद शाह अबरार अशरफ ने बताया यह दरगाह 600 साल पुरानी है. यहां मखदूम बाबा ने ज्ञान का प्रकाश फैलाया और ऊंच-नीच का भेदभाव मिटाया. साथ ही साथ लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया. यहीं वजह है कि आज भारत के कोने-कोने से अतीकतमंद यहां आते हैं और उनकी मुराद पूरी होती है.