भोपाल। संगीत नाटक अकादमी और संस्कृति संचालनालय के सहयोग से गांधी भवन में आज यंग्स थिएटर फाउंडेशन के कलाकारों द्वारा हिंदी के सुप्रसिद्ध नाटककार गिरिराज किशोर के नाटक जुर्म आयद का मंचन किया। सरफ़राज़ हसन की परिकल्पना व निर्देशन में तैयार 15 कलाकारों के अभिनय से सजा धजा यह नाटक अपराध - क़ानून और न्यायिक प्रिक्रिया के मनोविज्ञान को दिखाता विचारोत्तेजक नाटक है। नाटक में इसकी मुख्य पात्र उम्मेदी के माध्यम से महिला समाज के संत्रास को रेखांकित करने वाला ये नाटक "जुर्म आयद" समाज के सामने कई प्रश्न खड़े करता है और ये सोचने के लिए मजबूर करता है कि हमारी सहानुभूति वास्तव में किसके साथ है..? ज़ुल्म करने वाले, ज़ुल्म सहने वाले या फिर हालत-व्यवस्था या अपराध करने के पीछे छुपे इंटेंशन पर..! नाटक का मुख्य चरित्र उम्मेदी देवी है जिसने अपने पति से बेपनाह प्यार किया परंतु उम्मेदी के चरित्र पर शक किए जाने के कारण निरंतर ज़ुल्म का शिकार होने पर भी उसे सहती रही लेकिन जब यह शक की गंध उसकी नवजात बेटी पर आई तो उम्मेदी ने अपने अधिकार और अपनी बेटी के लिए लड़ने की बजाय अपनी और अपनी बेटी की जीवन लीला ही ख़त्म करने का निर्णय कर नदी में छलांग लगा दी और हुआ यूं कि मासूम बेटी तो मर गई पर उम्मेदी को बचा लिया गया और यही से शुरू हुआ उम्मेदी के साथ दुःख - तकलीफ़ का दौर। थाना, कोर्ट पेशी और सवाल जवाब का सिलसिला बकौल उम्मेदी के वकील की उम्मेदी देवी समाज की उन बुराइयों को शिकार है जो भूखे कुत्तों की तरह दिन रात इंसान को दौड़ाया करती है, इसी समाज ने उसके सपनों को तोड़ा, बच्ची और मां बाप के बीच की पहचान खत्म की, उन्हें ज़िंदगी का खात्मा करने के लिए मजबूर किया। सच पूछिए तो कानून के पास दो ही रास्ते होते है या तो मुजरिम को हाथी के पांव तले कुचलता देखे और ख़ुश हो या फिर उस पूरे समाज को फांसी चढ़ाने का हुक्म दे जो जर्जर हो चुका है, जो अपनी कमज़ोरी छिपाने के चक्कर में निरंकुश बनता जा रहा है।
असल सवाल है कि क्या कानून के पास कोई ऐसा नपेना है जो समाज की ज़्यादतियों और मज़लूम की मज़लूमियत का सही सही जायेज़ा ले सके?
उम्मेदी के केस को देख रहे जस्टिस शिवचरण के संवाद की वे कागज़ है, टाइपराइटर है, कलम है और मात्र हस्ताक्षर है, लाठी और डंडा है, दर्शक है, आखिर इंसान क्यू नही है ? कुर्सी क्यों हो गए है ? और कुर्सी एक चट्टान क्यों है ? न्यायिक प्रिक्रिया के कई ज्वलंत अंतर्द्वंद को रेखांकित करता है।
नाटक में यही दिखाया गया है कि इंसानियत को जगाने के लिए इन सवालों का उठना ज़रूरी है, हो सकता है जवाब आसान न हो, अगर सवाल है तो जवाब खोजा जा सकता है ।
जटिल नाटक "जुर्म आयद" के कथानक को अपनी सहज कल्पना व निर्देशन से सरफ़राज़ हसन द्वारा दृश्यों के माध्यम से बख़ूबी दिखाया गया है, मंच निर्माण में बहुत ब्लेक बॉक्स का प्रयोग कर विषय की डार्कनेस को दिखाने की बेहतरीन कोशिश को सभी ने सराहा और जुर्म आयद नाटक से सवालों को उठाया है और मंचन के जरिए सबको उन सवालों से जोड़ने की कोशिश की गई है। सरफ़राज़ कहते हैं मैंने अपने कलाकारों के माध्यम से यही कोशिश की है कि हम और आप सब इस नाटक के ज़रिए उस मुकाम तक जाने की कोशिश करे जहां इंसान और जिंदगी आमने सामने डंटे है और कानून ? ख़ैर, क्या कहा जाए।
मंच व्यस्थापक दीपांशु कुमार रहे व प्रकाश परिकल्पना व संचालन प्रियम जैन ने की, बैकग्राउंड म्यूज़िक राहुल कुशवाह ने संपादित किया वहीं रूप सज्जा शाम्भवी व वस्त्र वन्यास केतकी ने किया।