एक दिन महात्मा बुद्ध के शिष्यों का एक समूह घूम-घूमकर उनके उपदेशों का प्रचार कर रहा था कि मार्ग में भूख से तड़पता एक भिखारी दिखाई दिया।
उसे देखकर बुद्ध के एक शिष्य ने उसके पास जाकर कहा, ''अरे मूर्ख! इस तरह क्यों तड़प रहा है?
तुझे पता नहीं कि तेरे नगर में भगवान बुद्ध पधारे हुए हैं। तू उनके पास चल, उनके उपदेश सुनकर तुझे शांति मिलेगी।''
भिखारी भूख सहन करते-करते इतना शक्तिहीन हो चुका था कि वह चलने में भी असमर्थ था। सायंकाल उस शिष्य ने तथागत को इस प्रसंग से अवगत कराया। तब बुद्ध स्वयं भिखारी के पास पहुंचे और उसे भर पेट भोजन करवाया।
जब भिखारी तृप्त हो गया तो वह सुख की नींद सो गया। शिष्य ने आश्चर्यचकित हो पूछा, ''भगवन! आपने इस मूर्ख को उपदेश तो दिया ही नहीं, बल्कि भोजन करा दिया।'' भगवान बुद्ध मुस्कुराकर बोले, ''वह कई दिनों से भूखा था। इस समय भरपेट भोजन कराना ही उसके लिए सबसे बड़ा उपदेश है।''