उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र अपनी भौगोलिक संरचना के कारण अन्य क्षेत्रों से अलग माने जाते हैं, इसी कारण इन क्षेत्रों में कई मंदिर हैं, जहां देवता निवास करते हैं. जिनके दर्शनों के लिए देश भर से लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं, उन्हीं में से एक है धन के देवता कुबेर का मंदिर, जिसका बैकुंठ धाम बद्रीनाथ धाम से गहरा नाता है. चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम से 18 किलोमीटर पहले पांडुकेश्वर गांव स्थित है, जहां धन के देवता कुबेर का मंदिर स्थित है. मंदिर का बद्रीनाथ धाम से भी गहरा नाता है, उसका कारण है धाम के कपाट खुलने के बाद बद्रीश पंचायत में कुबेर जी और उद्धव जी की डोली का पांडुकेश्वर में रहना. दरअसल भगवान बद्री विशाल खजांची कुबेर के ऋणी हैं. यही वजह है कि प्रति वर्ष बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने पर कुबेर जी नारायण से अपना ऋण वसूलने के लिए उनकी पंचायत (बद्रीश पंचायत) में विराजमान होते हैं.

लोक मान्यताओं में है यह वर्णन

लोक मान्यताओं में कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने किसी खास काम के लिए कुबेर से ऋण लिया था, लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी भगवान विष्णु अपनी उधारी नहीं चुका पाए थे. जब कुबेर को लगा कि भगवान विष्णु अपना ऋण नहीं चुका पा रहे हैं, तो उन्होंने फैसला किया कि ग्रीष्म ऋतु में यात्राकाल के दौरान बद्रीनाथ पहुंचकर वह भगवान विष्णु से अपने धन को वसूलेंगे. जिसके बाद से प्रतिवर्ष जब बद्री विशाल के कपाट खोले जाते हैं, तो कुबेर जी और उद्धव जी को बद्रीनाथ धाम ले जाते हैं, जहां यात्रा काल के 6 महीने उनकी पूजा अर्चना की जाती है. वहीं यह भी माना जाता है कि हेमकुंड साहिब के पास कुबेर देव का एक बड़ा महल है. उस महल के भीतर बड़ा खजाना है. कहा जाता है कि जब कोई देवता मनुष्य पर अवतरित होते हैं, तो अपनी बोलने की शक्ति अर्जित करने के लिए दीवार का पेड़ (दीवार मूंडी) कुबेर महल के पास जाते हैं.

अलका नगरी के स्वामी कुबेर देव

पूर्व  धर्माधिकारी भुवन उनियाल बताते हैं कि कुबेर जी का संबंध भगवान बद्री विशाल से है क्योंकि यह भगवान बद्री विशाल के साथ पूजित होते हैं. कुबेर भगवानों के खजांची हैं और अलका नगरी के स्वामी हैं. साथ ही वह यक्षों के राजा हैं. वह आगे कहते हैं कि कुबेर देव ने त्रिपुरा बालाजी (वेंकटेश्वर भगवान) की शादी में धन धान्य दिया था, जिस कारण उन्हें 9 निधियों का स्वामी कहा जाता है.