पर्यटन में बजट अधिक, पर राजस्व आय कम •पंकज पाठक•
ज्यों-की-त्यों धर दीन्हि चदरिया
अब गया सरकार का ध्यान, बनी रणनीति
आज से वन्यजीव-पर्यटन अभियान
मुख्यमंत्री चम्बल से करेंगे अभियान का श्रीगणेश
भोपाल । मध्यप्रदेश में एक अरसे से उपेक्षित पड़े पर्यटन क्षेत्र की तरफ़ अब राज्य सरकार का ध्यान गया है । अब सरकार ने वन्यजीव-पर्यटन की दिशा में कुछ फ़ैसले लिए हैं, जिसके तहत वह कल शनिवार 4 जनवरी 2025 से वन्यजीव पर्यटन का एक नया अध्याय और अभियान शुरू करने जा रही है । मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, जो स्वयं पूर्व में मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष रहे हैं, ने इसकी कमान अपने हाथ में सम्भाल ली है ।
देश में सबसे ज़्यादा वन्य प्राणी और जंगल का क्षेत्र मध्य प्रदेश में है । बाघ याने टाइगर देश में सर्वाधिक मध्य प्रदेश में ही हैं । टाइगर रिज़र्व भी मध्य प्रदेश में सर्वाधिक हैं । विश्व प्रसिद्ध बांधवगढ़ और कान्हा जैसे राष्ट्रीय उद्यान भी मध्य प्रदेश में हैं ।
इसके अलावा धार्मिक पर्यटन के क्षेत्र भी बहुतायत हैं । खजुराहो जैसी विश्व धरोहर तक मध्य प्रदेश में है, बावजूद इसके मध्य प्रदेश में अपेक्षित राजस्व की प्राप्ति नहीं हो पा रही है । जबकि पर्यटन के क्षेत्र में हर साल लगभग 360 करोड़ रुपये ख़र्च किए जा रहे हैं । वहीं आय तीन-चार प्रतिशत भी नहीं है ।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव चंबल अभयारण्य के भ्रमण से अपना पर्यटन बढ़ाओ अभियान शुरू कर रहे हैं । मध्यप्रदेश बाघ, तेंदुआ और घड़ियाल जैसे प्राणियों की सर्वाधिक संख्या वाला प्रदेश है।यही नहीं चीता पुनर्स्थापन करने वाला भी मध्यप्रदेश एकमात्र प्रदेश है।
डॉ. यादव ने कहा कि देश में ही नहीं, पूरे विश्व में सर्वाधिक घड़ियाल चंबल नदी में पाए जाते हैं। विश्व में लगभग तीन हजार घड़ियाल हैं ।इनमें से 85 प्रतिशत चंबल नदी में हैं। यह तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के संयुक्त प्रयासों से एक प्रमुख संरक्षण परियोजना है। मध्यप्रदेश में वर्ष 1978 में इसे वन्य-जीव अभयारण्य के रूप में मान्यता दी गई थी । चंबल घड़ियाल वन्य-जीव अभयारण्य का मुख्य उद्देश्य लुप्तप्राय घड़ियाल, लाल मुकुट वाले छत कछुए और लुप्तप्राय गांगेय डॉल्फिन को संरक्षित करना है।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि चंबल नदी में कछुआ परिवार की 26 दुर्लभ प्रजातियों में से आठ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें भारतीय संकीर्ण सिर एवं नरम खोल वाला कछुआ, तीन धारीदार छत वाला कछुआ और मुकुटधारी नदी वाला कछुआ शामिल हैं, जो यहां की पहचान है।
(जनसंदेश टाइम्स. लखनऊ से साभार)