भोपाल। प्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग के तमाम प्रयासों के बाद भी जनता पोषण मटका के लिए सामग्री दान नहीं दे रही है। इस कार्यक्रम में आम जनता की अरुचि बडी बाधा बनकर सामने आई है। अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, पर्यवेक्षकों को पोषण मटका हेतु सामग्री जुटाने के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।  विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने जिलों का दौरा किया तो हकीकत सामने आई। अधिकारियों ने इस पर भी नाराजगी जताई कि कुछ पोषण कार्नर में सामग्री आ भी रही है तो वह बच्चों की पहुंच से काफी दूर है, जबकि निर्देश हैं कि सामग्री ऐसे स्थान पर रखी जानी चाहिए, जहां बच्‍चों का आसानी से हाथ पहुंच जाए।राज्य सरकार ने कुपोषण दूर करने के लिए पोषण मटका कार्यक्रम दोबारा शुरू किया है। इसके तहत प्रदेश के सभी 97135 आंगनबाड़ी केंद्रों में पोषण कार्नर शुरू किए गए हैं। इनमें बच्‍चों के लिए लड्डू, मठरी, नमकीन, मुरमुरे, बिस्किट, भुना चना-गुड़ आदि रखना है। ताकि वे अपनी इच्छा के अनुसार उठाकर खा सकें और उन्हें रोका-टोका भी न जाए। करीब एक महीने से चल रहे पोषण कार्नर का निरीक्षण पिछले दिनों विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने किया। अधिकतर जगह उन्हें यही बताया गया कि पोषण मटका के लिए आमजन से सामग्री नहीं मिल पा रही है। कार्नर के लिए सामग्री जन सहयोग से इकट्ठी करनी है। कलेक्टरों से कहा गया है कि वे स्थानीय स्तर पर अभियान चलाकर आमजन को अनाज देने के लिए प्रेरित करें। प्रशासन स्तर पर जन सहयोग का माडल फेल हो गया। अब विभाग के संचालक डा. राम राव भोंसले ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, पर्यवेक्षकों को यही जिम्मा सौंपा है। भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक देश को कुपोषण मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। प्रदेश में भी राज्य पोषण प्रबंधन रणनीति 2022 जारी की गई है। पोषण मटका इसी रणनीति का हिस्सा है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में प्रदेश में 10 लाख 32 हजार 166 कुपोषित बधो हैं। इनमें से छह लाख 30 हजार 90 बच्‍चे अति कुपोषित की श्रेणी में हैं। यह जानकारी सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र में दी थी।बता दें कि करीब छह साल पहले भी पोषण मटका कार्यक्रम शुरू किया गया था, तब भी सफलता नहीं मिली थी।