भोपाल ।शास्त्रीय संगीत की दुर्लभ शैली ध्रुपद के प्रख्यात गायक पंडित उदय भवालकर को आज २३ फरवरी २०२३ को नई दिल्ली में हुए अलंकरण समारोह में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने वर्ष २०२१ के संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया।एक निस्वार्थ समर्पित ध्रुपद गुरु और एक उत्कृष्ट संगीतकार पंडित उदय भवालकर, जो मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में उज्जैन के एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्‍लुक रखते हैं।उनका जन्‍म ५ फरवरी, १९६६ को हुआ ।

वे भारत की प्राचीनतम वित शास्‍त्रीय संगीत परंपरा ध्रुपद का पुन:प्रवर्तन व पुनरुत्‍थान करने, उसे वैश्‍व‍िक स्‍तर पर लोकप्रिय बनाने और उसके प्रचार-प्रसार का निमित्‍त बन गए हैं। इस क्षेत्र में उनके योगदान का अत्‍यंत गहरा सामाजिक- सांस्कृतिक प्रभाव रहा है। इस दिशा में, उन्‍होंने जो महत्‍वपूर्ण योगदान किया उसमें मुख्‍यत: पिछले ३५ वर्षों में कई शिष्‍यों को नि:शुल्‍क संगीत-शिक्षण प्रदान करना, दिव्‍यांग प्रतिभाशाली कलाकारों की कला को निखारना तथा साथ ही, संगीत की इस विधा, जिसमें अभी तक महिलाओं का  प्रतिनिधित्‍व नगण्‍य रहा हो, उसमें होनहार महिला संगीतज्ञों को तैयार करने के कार्य को विशेष रूप से गिना जा सकता है।

अब, उनका नाम ध्रुपद शब्‍द का पर्याय बन कर एक ऐसे अद्वितीय शक्तिपुंज के रूप में स्‍थापित हो गया है, जिसकी यात्रा भोपाल, मध्‍यप्रदेश में अल्‍लाउद्दीन खां संगीत अकादमी के एक निष्‍ठावान ध्रुपद शिष्‍य के रूप में प्रारंभ हुई, और अब ध्रुपद की लुप्‍तप्राय शैली को विश्‍वव्‍यापी बनाने की ओर अग्रसर है। आपने भारतीय गुरु-शिष्‍य परंपरा की समृद्ध साँस्‍कृतिक, कलात्‍मक विरासत को बनाए रखते हुए, ध्रुपद कलाकारों एवं शिक्षकों की एक नई पीढ़ी का निर्माण करने का जो कार्य किया है, वह अत्‍यंत प्रेरणादायक, अनुकरणीय एवं हमारी राष्‍ट्रीय कलात्‍मक विरासत के ल‍िए अमूल्‍य है।   

पंडित उदय भवालकर प्रमुख ध्रुपद गायकों में से एक हैं और ध्रुपद गायन की दुनिया भर में  पहचान व लोकप्रियता को बढ़ाने और उसे पुनर्व‍ित करने में उनकी सशक्‍त भूमिका रही है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के सहयोग से अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने साल्ज़बर्ग संगीत समारोह ऑस्ट्रिया (२०१५) में प्रस्‍तुत‍ि दी और इज़राइल का दौरा (२०१८) कर मजबूत सांस्कृतिक संबंध स्थापित किए। ध्रुपद गायक के रूप में उनकी उत्कृष्ट कला एवं कार्यों को देखते हुए उन्‍हें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए कुमार गंधर्व सम्मान (२००१) प्रदान क‍िया गया और वे सबसे कम उम्र में यह सम्‍मान प्राप्‍त करने वाले कलाकार हैं। उदय का मानना है कि जब हम सुर और राग में डूब जाते हैं तो हमारा स्व गायब हो जाता है और तब संगीत अपने अस्तित्व में आ जाता है; यही भारतीय विचारधारा में  'दर्शन' का सिद्धांत है। ध्रुपद,  उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत के सबसे पुराने रूपों में से एक है और उदय ने इसकी भव्यता, दिव्‍यता और सूक्ष्म भावना को बनाए रखा है। ध्रुपद, एक वंत और विकसित शास्त्रीय संगीत परंपरा है, जिसमें उदय ने राग, रस और भाव में गहराई से निहित, एक अनूठी शैली विकसित की है।

उदय ने ध्रुपद परंपरा के विशाल स्तंभ उस्ताद ज़‍िया फरीदुद्दीन डागर (गायन) और उस्ताद ज़‍िया मोहिउद्दीन डागर (रुद्र-वीणा) के साथ पारंपरिक गुरु शिष्य परंपरा में १२ वर्ष रह कर अध्‍ययन क‍िया ।  इस अवधि के दौरान उदय की सादगी, समर्पण और संगीत पर पूर्ण एकाग्रता ने उन्हें अपने गुरु के करीब ला दिया। यह अंतरंग रिश्‍ता, जिससे उन्‍हें अपने उस्ताद की स्वेच्छा से मिले संगीत के गूढ़ आंतरिक रहस्य, तथा साथ ही उदय की भक्ति, जिससे उन्हें पूर्णता और समग्रता की गहरी अनुभूति प्राप्‍त हुई। इस अवधि में एक प्रेरणादायक,  महत्वपूर्ण क्षण आया था, जब डागर परिवार के सबसे बड़े उस्ताद नासिर अमीनुद्दीन डागर ने १९८७ में उदय के गायन को पहली बार सुनकर उन्हें आशीर्वाद स्‍वरूप स्‍वर्ण पदक प्रदान क‍िया। उदय के गायन की एक आकर्षक शैली है और वे प्रत्‍येक  पृष्ठभूमि के श्रोताओं के हृदय को स्‍पर्श कर उनसे संवाद कायम करने में सक्षम है । वर्ष १९८५ में भोपाल में दी अपनी पहली प्रस्‍तुत‍ि से लेकर, बाद में उदय ने भारत और विदेशों में कई प्रतिष्ठित त्योहारों और कार्यक्रमों में प्रस्‍तुत‍ि दी है | उदय ने यूरोप, अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, जापान और सिंगापुर में व्यापक रूप से गायन प्रस्‍तुत‍ियाँ दी हैं और कई अलग-अलग संस्कृतियों के कलाकारों के साथ मिल कर भी गाया है।

उदय ने समकालीन नर्तक अस्ताद देबू, एनसेंबल मॉडर्न ऑर्केस्ट्रा, जर्मनी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई अन्य कलाकारों के साथ काम किया है। मुंबई में पृथ्वी महोत्सव में उनके साथ कोई और नहीं, बल्कि स्‍वयं उस्ताद ज़ाकिर  हुसैन ने भी पखावज बजाई है। तालयोगी पंड‍ित सुरेश तलवलकर और उस्ताद सुखविंदर सिंह नामधारी भी कई अवसरों पर उनके साथ रहें । उदय ने मणि कौल की 'क्लाउड डोर', अपर्णा सेन की 'मिस्टर एंड मिसेज अय्यर', अमोल पालेकर की 'अनाहत', रेणुका शहाणे की 'रीटा' और अन्य फिल्‍मों सहित, अंतर्राष्ट्रीय कला फिल्मों के साउंडट्रैक में भी अपना योगदान दिया है।

उत्कृष्ट प्रस्‍तुत‍ि करने वाले कलाकार होने के साथ-साथ, उदय एक बहुत ही संवेदनशील शिक्षक भी हैं और उन्‍होंने ध्रुपद के मार्ग पर चलने के लिए प्रतिबद्ध शिष्‍यों का एक समर्पित समूह भी तैयार किया है। उदय ने  इस क्षेत्र में शारीरिक रूप से दिव्‍यांग  छात्रों को भी बड़ी सहानुभूतिपूर्वक तैयार किया है और कई महिला ध्रुपद कलाकारों को प्रशिक्षित किया है, इस प्रकार, जहाँ पहले मह‍िलाओं और द‍िव्‍यांगजनों का नगण्‍य प्रतिनिध‍ित्‍व रहता था, उन्‍हें भी इस क्षेत्र में सशक्‍त क‍िया है। उन्होंने सिख समुदाय के उन छात्रों को भी संगीत श‍िक्षा दी है, जो गुरुबानी पदों की मूल ध्रुपद गायन परंपरा को पुनर्व‍ित करने का काम कर रहे हैं। उन्होंने रॉटरडैम म्यूजिक कंजर्वेटरी, वाशिंगटन विश्वविद्यालय, सिएटल और एशियन म्यूजिक सर्किट, लंदन जैसे संस्थानों में अंत अन्तर्राष्ट्रीय  स्तर पर भी संगीत शिक्षा प्रदान की है।

वर्ष २०१२ में उदय कोलकाता में आईटीसी के संगीत रिसर्च एकेडमी में गुरु बने। साथ ही, वे बंगाल फाउंडेशन के  परंपरा संगीतालय, ढाका, बांग्लादेश  में भी गुरु हैं।

"स्वरकुल"  उदय का अपना स्‍वयं का एक प्रयास है, जिसका मूल दर्शन, भारतीय गुरु शिष्य परंपरा के सारतत्‍व में गहराई से निहित है। स्वरकुल, एक ऐसे परिवेश का सृजन करने का प्रयास है, जिसमें शिष्‍यों को संगीत सीखने, अभ्‍यास करने और सुर-सर‍िता की गहराईयों में उतरने का अवसर मिल सके, ताकि वे ध्रुपद संगीत की समृद्ध भारतीय परंपरा को आगे बढ़ा सकें। इतने वर्षों से उदय  स्वरकुल  के  इसी विचारदर्शन से संगीत शिक्षणकार्य कर रहे हैं  और  अब  वे अपने शिष्‍यों के लिए एक ऐसा आवास निर्मित कर रहे हैं, जिसमें उनके रहने, संगीत सीखने तथा ध्रुपद की इस दिव्‍य भारतीय परंपरा में आगे प्रगत‍ि करने की व्‍यवस्‍था होगी।

उदय वर्तमान में मध्य प्रदेश सरकार के "विक्रमादित्य शोध संस्थान" के साथ कवि जयदेव के पदों की राग मालव  में संगीत-रचना और गायन का कार्य कर रहे हैं। साथ ही, वे ध्रुपद  के  रूप  में  गाए  जाने वाले आदि शंकराचार्य द्वारा लिखे गए श्लोकों की संगीत-रचना भी कर रहे हैं।