ज्यों-की-त्यों धर दीन्हि चदरिया


येलोमोजेक बीमारी से परेशान हैं किसान

छोटे किसानों तक नहीं पहुँच रहा है इलाज

भोपाल । भले ही देश में सोयाबीन का सबसे ज़्यादा उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि पिछले वर्षों की तुलना में मध्य प्रदेश में इसका उत्पादन काफ़ी घट गया है और इसका रक़बा भी काफ़ी कम हो गया है । इसका कारण यह है कि इसके पौधे में येलोमोज़ेक नामक वायरस फैल रहा है, जिसके कारण किसान काफ़ी परेशान हैं और वे इस बीमारी का इलाज करने में नाकाम हैं । यह समस्या देशव्यापी है ।

हालाँकि इसके इलाज का दावा किया जाता रहा है, लेकिन राज्य सरकार सामान्य किसानों तक उसका प्रचार-प्रसार करने में विफल रही है । इसलिए मध्य प्रदेश के किसानों में सोयाबीन की खेती के प्रति दिलचस्पी घटती जा रही है । एक ज़माने में मध्य प्रदेश में 65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की फ़सल उगायी जाती थी ।आज यह रक़बा घटकर 55 लाख 10 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र रह गया है । विभाग से यही जानकारी शासन को भेजी गई थी । लेकिन शासन द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर आँकड़ा पेश किया जा रहा है । यद्यपि मध्य प्रदेश अभी भी सोयाबीन स्टेट के रूप में जाना जाता है, क्योंकि देश में सोयाबीन के कुल उत्पादन का आधा मध्य-प्रदेश में पैदा होता है । यह भी सच है कि मध्य-प्रदेश में इसका रक़बा और उत्पादन बढ़ाने का प्रयास हो रहा है और उसमें थोड़ी-बहुत सफलता भी मिल रही है, लेकिन पूर्व की स्थिति में लौटने में कठिनाइयाँ आ रही हैं । इसके निराकरण के लिए सरकार को छोटे किसानों तक जाना होगा और यह दूरी जब तक बनी रहेगी, अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आएँगे ।

कैसे फैलती है बीमारी ?

दरअसल सोयाबीन येलोमोजेक एक वायरस रोग है ।यह पॉटीवायरस के कारण होता है। जोकि मुख्यतः सफेद मक्खी की चपेट में आने से लगता है । यह मक्खी पत्तियों पर बैठकर बीमारी को पूरे खेत की फसलों में फैला देती है। लगातार वर्षा होने पर इस रोग के संक्रमण का असर फसलों पर नहीं होता है। किन्तु यदि वर्षा तीन – चार दिन के अंतराल पर होती है, तो सफ़ेद मक्खी के द्वारा फसलों में संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है।

सरकार ने आँकड़ा बढ़ाकर बताया

सरकार का दावाहै कि गत वर्ष की तुलना में प्रदेश के सोयाबीन के रकबे में लगभग 2 प्रतिशत वृद्धि हुई है। सरकार वर्तमान में प्रदेश का सोयाबीन का रकबा 66 लाख हैक्टयर से अधिक बता रही है, जो विभागीय और मैदानी सच्चाई के एकदम विपरीत है ।

प्रदेश में 31 दिसम्बर तक लगभग 6.5 से 7 लाख मीट्रिक टन तक सोयाबीन का उपार्जन पूर्ण हो जाने का अनुमान है। मध्यप्रदेश ने महाराष्ट्र और राजस्थान को पीछे छोड़कर सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक राज्य बनने में सफलता प्राप्त की है। सरकार ने किसानों को सोयाबीन के लिए 4 हजार 892 रुपए की राशि प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में देने की व्यवस्था की है। प्रदेश में सोयाबीन उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि को देखते हुए उपार्जन की आवश्यक व्यवस्थाएं की गई हैं।

भुगतान के मामले में टॉप 10 जिले

प्रदेश में लगभग दो लाख किसानों को 1957.1 करोड़ रूपए की राशि का भुगतान उपार्जन के रूप में अब तक किया जा चुका है। नीमच सहित विदिशा,राजगढ़, नर्मदापुरम, आगर मालवा, शहडोल, अनूपपुर, जबलपुर, उमरिया और खरगौन ऐसे दस शीर्ष जिलों में शामिल हैं, जहां 75 प्रतिशत से अधिक किसानों को राशि का भुगतान किया जा चुका है। सोयाबीन के परिवहन का कार्य भी प्रदेश में 95 प्रतिशत हो चुका है। प्रदेश में मालवा अंचल में सर्वाधिक सोयाबीन उत्पादन होता है।

(जनसंदेश टाइम्स. लखनऊ से साभार)